गाँव का घर
(कविता)
अब गाँव में घर को त्यौहार आने पर
मालिक के बेटों का,
शहर से गाँव आने का रहता है,
बेसब्री से इंतजार,
पाना चाहते हैं सत्कार मालिक जैसे करते थे प्यार,
बेटे भी करें उनका वैसा ही दुलार,
सुख दुःख का करना चाहते हैं इज़हार,
मालिक ने कितने मन से जमा पूंजी,
खर्चकर घर को बनाया था,
मंदिर जैसा उसे सजाया था,
मालिक व आने वाली पीढ़ी,
आराम से घर में रहेगी,
आराम से जिंदगी की गाड़ी चलेगी,
मालिक ने मेहनत की सारी कमाई,
एक एक ईंट रखने में लगाया था,
तन मन को इसे सजाने में लगाया था,
मालिक के अवसान पर घर कितना रोया था,
पर बेटों को देख घर ने हौसला न खोया था,
शहर में नौकरी मिलते ही,
मालिक के बेटों ने बड़े शहर में,
बना लिए आलीशान मकान,
त्यौहार वही पर मनाते हैं
वही अपने सपनों को सजाते हैं,
त्यौहार आने पर गाँव के घर
के अरमान रह जाते हैं अधूरे,
अब शायद न होंगे पूरे,
चाहते हैं उन्हें भी रंगरोगन किया जाए,
लाइटों से उन्हें भी सजाया जाए,
चेहरे पर उनके मुस्कान खिल जाए,
पर यह हसरत मन में ही रह जाएगी,
घर पर काई व झाड़ उगते जा रहे हैं,
घर खंडहर में बदलते जा रहे हैं।।
-०-
लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव
-०-
गाँव का सजीव वर्णन
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत चित्रण
अमलेन्दु शुक्ल
बहुत शानदार कविता... गांव का सजीव चित्रण👌👌👌👌
ReplyDeleteशानदार कविता
ReplyDeleteबधाई
ReplyDeleteशानदार चित्रण ।
ReplyDeleteसुन्दर कविता।
ReplyDeleteSuperb
ReplyDeleteअति सुंदर
ReplyDeleteप्यारा गाँव का वर्णन।
ReplyDeleteNice poem
ReplyDeleteCongratulations