रिश्तों के मायने
(विधा : कविता)रिश्तों के मायने बदल रहे हैं,
आग पर बैठे जैसे उबल रहे हैं,
मंदिर के पत्थर को सीढ़ी बना,
अपनो को कुचल रहे हैं,
रिश्तों के मायने बदल रहे हैं.
बिन बोले कभी हाथ बढ़ाता,
आज चेतना शून्य है हर कोई,
रिश्ते शायद शून्य में बदल रहे हैं,
रिश्तों के मायने बदल रहे हैं.
जिसके खातिर माथा टेका,
रखा जिसके खातिर उपवास,
उसने बनाया किसी और को खास,
हर कोई रिश्तों को छल रहे हैं,
रिश्तों के मायने बदल रहे हैं.
आगे जाने की अंधी दौड़ लगी है,
सपनो को पाने की होड़ लगी है,
माँ बाप का बस सरनाम लगता है,
खून का रिश्ता बेकाम लगता है,
पास पड़ोसी बेगाने लग रहे हैं,
रिश्तों के मायने सच में बदल रहे है.
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रखा जिसके खातिर उपवास,
उसने बनाया किसी और को खास,
हर कोई रिश्तों को छल रहे हैं,
रिश्तों के मायने बदल रहे हैं.
आगे जाने की अंधी दौड़ लगी है,
सपनो को पाने की होड़ लगी है,
माँ बाप का बस सरनाम लगता है,
खून का रिश्ता बेकाम लगता है,
पास पड़ोसी बेगाने लग रहे हैं,
रिश्तों के मायने सच में बदल रहे है.
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अश्विनी राय 'अरुण' ©®
निवास- बक्सर, बिहार
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