टूट गया उम्मीदों का दामन
(कविता)
एक दीवार से लगकर
बहुत रोया था।
जब हमेशा के लिए मैंने
उसे खो दिया था।
बारिशें गम में ही
आंखों से रवां हैं।
वक्त रुखसत हो गई
जिसे गले लग कर
रोया था बहुत ही।
अब क्या करें
दूसरों पर भरोसा।
जब अपना ही नाता तोड़ चले
बड़ी उम्मीदों व आशा से
घुटने टेके मंदिरों में।
कहीं दुआ हो जाए कबूल
पर ईश्वर को
शायद कुछ और ही मंजूर था ।
टूट गया
उम्मीदों का दामन।
जिसे अपने प्यार से भरा था।
वक्त ने दिए ऐसे जख्म
धो रहा हूं अपने आंसुओं से।
एक दीवार से लगकर
बहुत रोया था।
जब हमेशा के लिए मैंने
उसे खो दिया था।
बारिशें गम में ही
आंखों से रवां हैं।
वक्त रुखसत हो गई
जिसे गले लग कर
रोया था बहुत ही।
अब क्या करें
दूसरों पर भरोसा।
जब अपना ही नाता तोड़ चले
बड़ी उम्मीदों व आशा से
घुटने टेके मंदिरों में।
कहीं दुआ हो जाए कबूल
पर ईश्वर को
शायद कुछ और ही मंजूर था ।
टूट गया
उम्मीदों का दामन।
जिसे अपने प्यार से भरा था।
वक्त ने दिए ऐसे जख्म
धो रहा हूं अपने आंसुओं से।
-0-
संजय कुमार सुमन
No comments:
Post a Comment