सतरंगी पटाखे
(लघुकथा)
बिजली विभाग के वरिष्ठ अभियंता पारीक साब बंगले पर पहुंचे तो दोनों बेटे जो सोलह-अट्ठारह साल के हैं उन्होंने कहा, "पापा, बाजार चलो और हमें दीवाली के पटाखे दिलाकर लाओ। हमें ऑटोमेटिक रॉकेट और सतरंगी पटाखों की बड़ी पेटियां चाहिए जो आसमान में बहुत ऊँचे जाकर रंगीन रोशनी देते हैं।" पारीक साब कुछ देर सोचते रहे, फिर मुस्कुराते हुए दोनों को कार में बैठने का इशारा किया। कुछ देर बाद वो एक मॉल में जा पहुंचे। पारीक साब बच्चों से बोले, "पहले मैं कुछ पटाखे मेरे लिए ले लूं।" बच्चे अचंभित से उन्हें देखते रहे और उन्होंने कुछ फुलझड़ियाँ, जमीन चक्करियां, अनार, छोटे पटाखे, मिट्टी के दीये और आधा-आधा किलो मिठाई ले के दस पैकेट बनवाए और बाहर आकर कार में बैठ गये। बच्चे बोले पापा हमारे पटाखे....?
पारीक साब शहर से बाहर की तरफ कार बढ़ाते हुए बोले, "आज तुम्हें असली दीपावली दिखाकर लाता हूँ, फिर तुम्हारे लिए बहुत सारे सतरंगी पटाखे खरीदेंगे। लगभग आधे घण्टे की ड्राइव के बाद वो एक गाँव में थे, कच्चे-पक्के मकानों के बीच। पारीक साब अपने रूरल एरिये से परिचित थे। बच्चों को पैकेट्स लाने को कहा और झोंपड़ीनुमा घरों में जाकर पैकेट देते, कुछ बातें करते और ढ़ेर सारी दुआएं लेकर आगे बढ़ जाते....इस तरह दो घण्टे गरीबों के घर दीवाली की शाम मनाकर वापस शहर की ओर चल पड़े। आते समय दोनों बच्चे धीर-गंभीर थे। गाड़ी पुनः मॉल पर आकर रूकी। पारीक साब बोले, "जाओ और जितने महंगे पटाखे चाहिए ले लो।" दीवाली का सही मतलब समझ चुके दोनों बच्चे बोले, "पापा चलो, किसी छोटी दुकान से फुलझड़ियां और छोटे पटाखे ले लेते हैं। अब मिट्टी के दीयों से ही दीवाली मनाएंगे। पारीक साब फिर मुस्कुराने लगे।
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गोविन्द सिंह चौहानराजसमन्द (राजस्थान)
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