भूल गया था सूरज (कविता)
(कविता)
अपनी उम्र के
लगभग
आधे पड़ाव पर
खड़ी ये औरतें
लौट जाना चाहती हैं
वापस मायके की
चौखट पर
जहां छोड़ आईं थीं
मन का एक सिरा।
ये औरतें
महसूस करना चाहती हैं
अपनी हथेली की
गर्माहट को
पूरा का पूरा।
लगभग
आधे पड़ाव पर
खड़ी ये औरतें
लौट जाना चाहती हैं
वापस मायके की
चौखट पर
जहां छोड़ आईं थीं
मन का एक सिरा।
ये औरतें
महसूस करना चाहती हैं
अपनी हथेली की
गर्माहट को
पूरा का पूरा।
थाम कर
पिता की उंगली
फिर से
चलना चाहती हैं।
अनेक बार
सोचती हैं वो
कि पृथ्वी के
साथ-साथ
वो भी काट चुकी हैं
सूर्य के
चालीस-पचास चक्कर
पर उनके हिस्से की
धूप उगलना
शायद
भूल गया था सूरज।
-०-
पिता की उंगली
फिर से
चलना चाहती हैं।
अनेक बार
सोचती हैं वो
कि पृथ्वी के
साथ-साथ
वो भी काट चुकी हैं
सूर्य के
चालीस-पचास चक्कर
पर उनके हिस्से की
धूप उगलना
शायद
भूल गया था सूरज।
-०-
पता:
डॉ॰ आरती बंसल
सिरसा (हरियाणा)
-०-
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