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Thursday, 21 November 2019

महक (लघुकथा) - गोविन्द शर्मा

महक
(लघुकथा)
वह अपनी गर्लफ्रेंड से मिलने जा रहा था। फूल बेचने वाले ने उसकी चाल से ही पहचान लिया। बोला- साहब, आप गर्लफ्रेंड से मिलने जा रहे है। उसके लिये ये फूल लेते जाएं, बहुत प्यारी महक हैं इनमें । वह सूंघ कर खुश हो जायेगी।
कितने का है यह गुलदस्ता?
साहब, सिर्फ एक सौ रूपये का।
‘अच्छा लाओ’ कहते हुए उसने अपनी जेब से पर्स निकाला, उसमें झांका। पैसे निकालने को हुआ, फिर वापस पर्स को अपनी जेब में रख लिया।
हैरान फूल वाला बोला- क्या हुआ साहब, क्या पर्स में एक सौ रूपये नहीं है?
है।
सौ सौ के कई नोट हैं।
फिर आप महक का यह तोहफा खरीद क्यों नहीं रहे?
मुझे याद आ गया। उसे फूलों से ज्यादा नोटों की महक प्यारी लगती हैं।
फूल वाला कह नहीं सका कि मुझे भी वह महक चाहिए।
-०-
गोविन्द शर्मा
ग्रामोत्थान विद्यापीठ, संगरिया - 335063
जिला हनुमानगढ़ (राजस्थान)

-०-
***
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1 comment:

  1. लाज़बाब लघुकथा। दोनों का अंतर्द्वंद्ध बेहद ह्रदयस्पर्शी है। हार्दिक बधाई।

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