सृजन की बेला
(कविता)
सृजन की बेला
सृजन की बेला में सोलह सिंगार करें
आओ सखी आज स्वयं से स्वयं का साक्षात्कार करें।
नहीं करेगा कोई तुम्हें प्रोत्साहित यहां ,
पर तुम न होना हतोत्साहित
यह संसार ऐसे ही तुम्हारा प्रतिकार करेगा
चलना पड़ेगा अकेले तुम्हें कर्म पथ पर
लड़ना पड़ेगा अपनी मुश्किलों से संवम ही
आओ सखी आज स्वयं से स्वयं का साक्षात्कार करें।
सृजन की बेला में सोलह सिंगार करें
आओ सखी आज स्वयं से स्वयं का साक्षात्कार करें।
नहीं करेगा कोई तुम्हें प्रोत्साहित यहां ,
पर तुम न होना हतोत्साहित
यह संसार ऐसे ही तुम्हारा प्रतिकार करेगा
चलना पड़ेगा अकेले तुम्हें कर्म पथ पर
लड़ना पड़ेगा अपनी मुश्किलों से संवम ही
आओ सखी आज स्वयं से स्वयं का साक्षात्कार करें।
Good
ReplyDeleteअति सुंदर कविता
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeletebahut he khubshurat lika
ReplyDeletesunder pangtiya
ReplyDeletebahut acha likha beta aapne
ReplyDeletegazab
ReplyDeletesunder kavita
ReplyDeletekhubshuarat
ReplyDeleteacha likha hai
ReplyDeletesunder
ReplyDeletenice written
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