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Tuesday 5 November 2019

तेरी न मेरी कोई ज़ात हो (कविता) - तारा प्रजापत 'प्रीत'

तेरी न मेरी कोई ज़ात हो
(कविता)

न रवाज़ो का डर
न मज़हब की दीवार हो,
प्यार की शुआए हो
नूर की बरसात हो,
तेरी न मेरी कोई ज़ात हो।

खुली क़िताब सी मैं
तेरा भी न कोई राज रहे,
सुबह हो सुकुनों वाली
न ग़म की अंधेरी रात हो
तेरी न मेरी कोई ज़ात हो।

थोड़ी शरारत हो
थोड़ी सी संजीदा हो
ज़िन्दगी अपनी,
ख़ुशी का नज़राना हो और
दुआओं की सौग़ात हो।
तेरी न मेरी कोई ज़ात हो।

न पूछना तुम
मुझसे मेरा अतीत,
मुझे भी कोई मतलब नहीं
तेरे गुज़रे ज़माने से,
न शक हो, न यक़ीन की बात हो।
तेरी न मेरी कोई ज़ात हो।

तेरे और मेरे बीच फ़क़त
अहसास का एक रिश्ता हो,
तुम भी दिल से निभाना इसे
मैं भी रूह से करूँगी क़ुबूल,
सिवाय इसके न कोई जज़्बात हो।
तेरी न मेरी कोई ज़ात हो।

मुद्दतों बाद तो,मिले है हम
न बिछड़ने की बात करना,
तुम थाम लेना हमारी बाहें
हम न छोड़ेंगे तुम्हारा दामन,
ख़िलाफ़ चाहे ये पूरी क़ायनात हो।
तेरी न मेरी कोई ज़ात हो।

बसाने दे तू अपनी सूरत
मुझे अपनी इन आँखों में,
चन्द लम्हें तो गुज़ारने दे
मुझे तू साथ अपने,
शायद न फिर मुलाक़ात हो
तेरी न मेरी कोई ज़ात हो।
-०-
तारा प्रजापत 'प्रीत'
खींवराज जी X. E. N. प्लॉट नम्बर-13 B,
गायत्री विहार,खादी भंडार के पीछे,रातानाड़ा, जोधपुर (राज०)
-०-


***
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