तेरी न मेरी कोई ज़ात हो
(कविता)
न रवाज़ो का डर
न मज़हब की दीवार हो,
प्यार की शुआए हो
नूर की बरसात हो,
तेरी न मेरी कोई ज़ात हो।
खुली क़िताब सी मैं
तेरा भी न कोई राज रहे,
सुबह हो सुकुनों वाली
न ग़म की अंधेरी रात हो
तेरी न मेरी कोई ज़ात हो।
थोड़ी शरारत हो
थोड़ी सी संजीदा हो
ज़िन्दगी अपनी,
ख़ुशी का नज़राना हो और
दुआओं की सौग़ात हो।
तेरी न मेरी कोई ज़ात हो।
न पूछना तुम
मुझसे मेरा अतीत,
मुझे भी कोई मतलब नहीं
तेरे गुज़रे ज़माने से,
न शक हो, न यक़ीन की बात हो।
तेरी न मेरी कोई ज़ात हो।
तेरे और मेरे बीच फ़क़त
अहसास का एक रिश्ता हो,
तुम भी दिल से निभाना इसे
मैं भी रूह से करूँगी क़ुबूल,
सिवाय इसके न कोई जज़्बात हो।
तेरी न मेरी कोई ज़ात हो।
मुद्दतों बाद तो,मिले है हम
न बिछड़ने की बात करना,
तुम थाम लेना हमारी बाहें
हम न छोड़ेंगे तुम्हारा दामन,
ख़िलाफ़ चाहे ये पूरी क़ायनात हो।
तेरी न मेरी कोई ज़ात हो।
बसाने दे तू अपनी सूरत
मुझे अपनी इन आँखों में,
चन्द लम्हें तो गुज़ारने दे
मुझे तू साथ अपने,
शायद न फिर मुलाक़ात हो
तेरी न मेरी कोई ज़ात हो।
-०-
न रवाज़ो का डर
न मज़हब की दीवार हो,
प्यार की शुआए हो
नूर की बरसात हो,
तेरी न मेरी कोई ज़ात हो।
खुली क़िताब सी मैं
तेरा भी न कोई राज रहे,
सुबह हो सुकुनों वाली
न ग़म की अंधेरी रात हो
तेरी न मेरी कोई ज़ात हो।
थोड़ी शरारत हो
थोड़ी सी संजीदा हो
ज़िन्दगी अपनी,
ख़ुशी का नज़राना हो और
दुआओं की सौग़ात हो।
तेरी न मेरी कोई ज़ात हो।
न पूछना तुम
मुझसे मेरा अतीत,
मुझे भी कोई मतलब नहीं
तेरे गुज़रे ज़माने से,
न शक हो, न यक़ीन की बात हो।
तेरी न मेरी कोई ज़ात हो।
तेरे और मेरे बीच फ़क़त
अहसास का एक रिश्ता हो,
तुम भी दिल से निभाना इसे
मैं भी रूह से करूँगी क़ुबूल,
सिवाय इसके न कोई जज़्बात हो।
तेरी न मेरी कोई ज़ात हो।
मुद्दतों बाद तो,मिले है हम
न बिछड़ने की बात करना,
तुम थाम लेना हमारी बाहें
हम न छोड़ेंगे तुम्हारा दामन,
ख़िलाफ़ चाहे ये पूरी क़ायनात हो।
तेरी न मेरी कोई ज़ात हो।
बसाने दे तू अपनी सूरत
मुझे अपनी इन आँखों में,
चन्द लम्हें तो गुज़ारने दे
मुझे तू साथ अपने,
शायद न फिर मुलाक़ात हो
तेरी न मेरी कोई ज़ात हो।
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