पेड़ की दुर्दशा
(मुक्तक गीत)आज पेड़ भयभीत हुआ है।
फरसाधर से डरा हुआ है।
कब किसकी दुर्दशा हो जाए,
इसी बात से कंपा हुआ है।।
हाथ दराती रस्सी कंधे।
निर्दयता से बनकर अंधे।
काटें शाखाएं क्रूर बन,
बेच-बेचकर करते धंधे।।
विवश पेड़ अब कहां को जाएं।
कोई ना उसकी मदद को आएं।
अपनी पीड़ा खुद ही सहकर,
अश्रुधार नित बहती जाएं।।
भीषण गर्मी में शीतलता।
वायु, छांव व जल निर्मलता।
दावानल का कोप सहनकर,
फिर भी मधुर, सरस फल फलता।।
पादप जग के महाप्राण हैं।
वहीं महान ऋषि प्रचेतान हैं।
इनकी महिमा-आश्रय पाकर,
ऋषि, मुनि, कवि बन सब महान हैं।।
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सुंदर
ReplyDeleteसुंदर
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी रचना
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