आँसू
(लघुकथा)
परिणीता की माँ की बीमारी दिन ब दिन बढ़ती जा रही है । जिस दिन डाक्टर ने उसे साफ साफ जवाब देते हुए कहा था कि यह बीमारी ठीक नहीं होगी , इलाज से तीन चार महीने मौत टल सकती हैर । सुनकर परिणीता के पैरों तले से जमीन खिसक गई थी । पिता की मृत्यु के समय भी इतना दुख नहीं हुआ था उसे । माँ की हालत पर सम्वेदना देने बहुत आए, लेकिन हर किसी का मतलब छिपा था। परिणीता भी अब ना समझ नहीं रही । पड़ोस के दिवाकर चाचा पहले भी कई बार आए थे । पिताजी की मृत्यु के बाद माँ से कितने मीठे मीठे बोल रहे थे, तभी माँ ने परिणीता को बता दिया था कि ऐसे लोगों से सावधान रहना और वीर चाचा एवं कोमल चाची तो माँ की बीमारी की बात सुनते ही दौड़े आए और परिणीता से कहने लगे, "चिंता न करो बेटी, हम है न , तुम तो हमारी बेटी जैसी हो । इतने जमीन जायदाद हैं। मुसीबत में काम न आए तो किस काम की ! चाहो तो गिरवी रख सकती हो , तुम्हें देखने के लिए हम सभी है न ! वगैरह ....वगैरह ।" उसे पानी लाने के लिए भेजकर उसकी माँ से जो बात कही उसे सुनते ही उसका दिमाग गर्म हो गया और इतना लाड़ प्यार जताने के पीछे का दृश्य साफ हो गया । वो मर जाने के लिए तैयार है मगर वीर चाचा का पागल पियक्कड़ बेटे से शादी नहीं करेगी ।
परिणीता के न बताने से भी उसकी माँ जान गई थी कि वो चंद दिनों की मेहमान है । इसलिए उसे बोल रही थी ," मेरे चले जाने के बाद यह जालिम दुनिया तुझे अकेले पाकर खा जाएगी। मामा ने तेरे लिए जो लड़का देखा है, उससे शादी के लिए हाँ बोल दे ।" परिणीता मामा और माँ की बातों में सहमति दे दी ।
उस दिन सुबह सेे माँ बोल नहीं पा रही थी । डॉक्टर वक्त कम है बताकर चले गए । इष्ट कुटुम्ब सबको खबर दिया गया । शाम को माँ लम्बी लम्बी साँस ले रही थी और जोर से परिणीता के हाथ पकड़कर कुछ बताने की कोशिश कर रही थी लेकिन कुछ बोल नहीं पाई। केवल आँखों से आँसू टपक रहे थे । देखते देखते ही माँ की साँसें और आँसू दोनों ही बंद हो गए और परिणीता किसी नदी के तटबंध जैसे टूट गई ।
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वाणी बरठाकुर 'विभा'
शोणितपुर (असम)
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सुन्दर मार्मिक
ReplyDeleteसुंदर मार्मिक लघुकथा
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