अनहोनी
(लघुकथा)
सेवा रामलाल कुछ दिन पहले ही रोजगार की तलाश में अपनी मां के साथ शहर आया था ।वो पढ़ा - लिखा तो था नहीं इसलिए शहर में उसे चाय के
एक ठेले पर बर्तन धोने का काम ही मिल पाया। उसकी मां भी लोगों के घरों में साफ - सफाई एवं चौका - बर्तन आदि काम करने लगी । रामलाल जिस ठेले पर काम करता था उसके पास ही मिठाई और नमकीन की एक बङी दूकान थी ।उस दूकान पर पूरे दिन ग्राहकों की भीड़ लगी रहती । रामलाल देखता कि पहले लोग उसकी बंडी पर चाय पीते फिर उस दूकान पर जाकर कचौड़ी - समोसा आदि खाते । बहुत बार उसका भी मन करता कचौड़ी - समोसा खाने का परन्तु उसके पास पैसे नहीं होने के कारण वह मन मसोस कर रह जाता था।
एक दिन उसने अपनी मां को अपनी इच्छा के बारे में बताया ।तब उसकी मां ने उसे पांच रुपए दिए और कहा कि कल तूं भी एक समोसा खा लेना । रामलाल बहुत खुश हुआ और अगले दिन का इंतजार करने लगा । अगले दिन दोपहर का काम पूरा करके वह अपने मालिक से पूछकर उस दूकान पर गया ।डरते - डरते उसने दूकान के एक कर्मचारी से एक समोसा देने को कहा । पहले तो उसने सुना ही नहीं फिर जब उसने दोबारा कहा तो अखबार के कागज़ में लपेटकर एक समोसा उसे पकङा दिया और पैसे मांगे । रामलाल ने अपनी मुट्ठी में सहेजे हुए पांच रुपए उसे पकङा दिए और जाने लगा । इतने में ही उस कर्मचारी ने रामलाल को वापस बुलाया और एक रुपया और देने को कहा । रामलाल बोला - ' मेरे पास तो इतने ही पैसे हैं और एक समोसे के तो पांच रुपए ही है ना ।'
'नहीं , आजकल छः रुपए हो गए हैं ।' इतना कहकर कर्मचारी ने उसके हाथ से समोसा छीन लिया और बिना पैसे लौटाए ही उसे वहां से भगा दिया । बेचारा रामलाल रोता ही रह गया , उसे ना तो समोसा मिला और ना ही पैसे ।उसकी यह दशा देखकर दूकान में लगा हुआ साइन बोर्ड हंस रहा था , जिस पर बङे - बङे अक्षरों में लिखा था - ' ग्राहक की सेवा ही हमारा प्रथम कर्तव्य ।' पता नहीं दूकानदार अपने इस ग्राहक की यह कैसी सेवा कर रहा था ?
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श्रीमती सरिता सुराणा
हैदराबाद (तेलंगाना)
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