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Friday, 29 November 2019

मैं सोचती हूँ काश (कविता) - तनवीर मतीन खान

मैं सोचती हूँ काश
(कविता)
मैं नहीं सोचती कि
मेरे लिखे को कविता का नाम दो
मैं नहीं सोचूँगी कि
कवियों में मेरा नाम हो,
मेरे शब्द भले ही
महफिल की रौनक ना बने,
लेकिन मैं सोचती हूँ,
कि मेरे शब्दों की जमीन से उगे
एक ईमानदार सोच,
जो पहाड़ों का सीना चीर कर
हवाओं का रुख़ बदल दे,
मेरे शब्द निराशा के बादलों को
उम्मीद की बारिशों में बदल दें,
मैं सोचती हूँ
मेरा कोई वाक्य
किसी की सोई हुई आत्मा को फिर से जगा दे,
मैं सोचती हूँ
मेरे शब्दों में बस जाए
बाण की तासीर,
जो ढुलमुल व्यवस्था को
चीर कर निकल जाए
मैं सोचती हूँ,
नगाड़ों की तरह गूंज उठे मेरे शब्द,
ताकि अव्यवस्था की खुमारी में
सोई सियासत,
नींद से जाग जाए
मैं सोचती हूँ
काश
मेरे शब्द नगाड़ा होते।
-०-
पता: 
तनवीर मतीन खान
नागपुर (महराष्ट्र) 
-०-

***
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