साहित्य प्रेमी
(लघुकथा)
ओह हो ! मां आप यहां प्रेमचन्द कि किताबों में ही अटकी पड़ी है ।
"घर नहीं चलना है।" लाईब्रेरी बंद होने का समय हो गया ।
अरे बेटा ! पढ़ने में इतने मशगूल हो गई कि समय का कुछ पता ही नहीं चला ।
पल्लवी झट से उठ खड़ी हुई ।
चलो बेटा जरा बाजार से सब्जी भी खरिदवा देना ।
स्कूटी पर बैठो मां आगे तिराहे पर से ले लेना सब्जी , जल्दी से घर पहुंच कर एसाइनमेंट भी तैयार करना है ।
मां एक बात बताओ आपको आज के समय में
प्रेम चंद की कहानी के ये अजीबो-गरीब केरेक्टर कैसे पसंद आ जाते ?
ओ माई गाड ! प्रेमचंद जी ने कैसे कैसे कैरेक्टर लिखे हैं । गोबर .... हा हा हा और ..और झुनियां , और बेचारी निर्मला लाचारी भरा जीवन बिता देती ।
तुम नहीं समझोगी बेटा माटी की सुगन्ध आती है जब हम इन किताबों को पढ़ते हैं आंखों में एक चित्र सा खिंच जाता है । मां क्या हे ना आप भी ना थोड़ा प्रेक्टिकल होकर सोचो ?
अब पूस की रात के हीरो को ठिठुरने की क्या जरूरत थी, कहीं से लकड़ियां ले आता और घास फूस की एक झुपड़िया ही बना लेता ।
कुछ क्रियेटिव सोचता ही नहीं था उनका हीरो ।
और हां मां गबन में तो कमाल ही कर दिया हीरो ने बीवी से मना भी तो कर सकता चुड़ियों के लिए... लेकिन नहीं किया ... आखिर में फस गया बेचारा ।
माँ कभी टालस्टाय को भी पढ़ कर देखो ?
जिस देश की धरती पर पैदा नहीं हुई उस की पृष्ठभूमि से जुड़ाव महसूस नहीं होता पढ़ कर भी पराया पन सा लगता है ।
हमारे हिंदी साहित्य को पढ़ कर लगता हैं जैसे उसी युग को जी लिया हिंदी में मिठास है शब्दों का भंडार है। आज हिंदी दिवस के दिन सेल्यूट करती हूं सभी हिंदी साहित्य सेवियों को।
वाह मां ! आपके हिंदी साहित्य प्रेम को नमन है।
"घर नहीं चलना है।" लाईब्रेरी बंद होने का समय हो गया ।
अरे बेटा ! पढ़ने में इतने मशगूल हो गई कि समय का कुछ पता ही नहीं चला ।
पल्लवी झट से उठ खड़ी हुई ।
चलो बेटा जरा बाजार से सब्जी भी खरिदवा देना ।
स्कूटी पर बैठो मां आगे तिराहे पर से ले लेना सब्जी , जल्दी से घर पहुंच कर एसाइनमेंट भी तैयार करना है ।
मां एक बात बताओ आपको आज के समय में
प्रेम चंद की कहानी के ये अजीबो-गरीब केरेक्टर कैसे पसंद आ जाते ?
ओ माई गाड ! प्रेमचंद जी ने कैसे कैसे कैरेक्टर लिखे हैं । गोबर .... हा हा हा और ..और झुनियां , और बेचारी निर्मला लाचारी भरा जीवन बिता देती ।
तुम नहीं समझोगी बेटा माटी की सुगन्ध आती है जब हम इन किताबों को पढ़ते हैं आंखों में एक चित्र सा खिंच जाता है । मां क्या हे ना आप भी ना थोड़ा प्रेक्टिकल होकर सोचो ?
अब पूस की रात के हीरो को ठिठुरने की क्या जरूरत थी, कहीं से लकड़ियां ले आता और घास फूस की एक झुपड़िया ही बना लेता ।
कुछ क्रियेटिव सोचता ही नहीं था उनका हीरो ।
और हां मां गबन में तो कमाल ही कर दिया हीरो ने बीवी से मना भी तो कर सकता चुड़ियों के लिए... लेकिन नहीं किया ... आखिर में फस गया बेचारा ।
माँ कभी टालस्टाय को भी पढ़ कर देखो ?
जिस देश की धरती पर पैदा नहीं हुई उस की पृष्ठभूमि से जुड़ाव महसूस नहीं होता पढ़ कर भी पराया पन सा लगता है ।
हमारे हिंदी साहित्य को पढ़ कर लगता हैं जैसे उसी युग को जी लिया हिंदी में मिठास है शब्दों का भंडार है। आज हिंदी दिवस के दिन सेल्यूट करती हूं सभी हिंदी साहित्य सेवियों को।
वाह मां ! आपके हिंदी साहित्य प्रेम को नमन है।
-०-
अर्विना
प्रयागराज (उत्तरप्रदेश)
-०-
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