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Monday, 23 December 2019

बड़ी हो गई (लघुकथा) - गोविन्द शर्मा

बड़ी हो गई
(लघुकथा)
आठ साल की पिचिका की दादी उसके पास रहने आ गई। दादी को पिचिका और पिचिका को दादी- अच्छी लगने लगे। एक दिन दादी ने देखा, पिचिका खूब गीली मिट्टी में खेल रही हैं।दादी ने किंचित गुस्से में कहा- यह क्या कर रही हो? न जाने तुम कब बड़ी होवोगी।
पिचिका को हंसी आ गई। बोली- दादीजी, आपको पता नहीं है क्या? मैं बड़ी हो गई हूं। जब से घर में मेरा छोटा भाई आ गया है। वह मुझसे से कोई चीज छीनता है और मैं रोकती हूं तो सब कहते हैं- देदो उसे, तुम बड़ी हो। कभी किसी बात को लेकर तो कभी किसी बात को लेकर मुझे कहते रहते हैं- तुम बड़ी हो, यह तुम्हें मारता है तो उसे वापस मत मारो। वह छोटा है तुम बड़ी हो। वह मम्मी के साथ ही जायेगा और पापा के साथ भी। तुम घर में रह सकती हो, क्योंकि तुम बड़ी हो। वाह दादी, आप पूछ रही हैं कि मैं बड़ी कब होऊंगी।
-०-
गोविन्द शर्मा
संगरिया- हनुमानगढ़ (राजस्थान)

-०-
***
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2 comments:

  1. बहुत प्यारी लघुकथा। अनजाने हम सब बड़े बच्चों के साथ ऐसा कर देते हैं।

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  2. बच्चों के सामने यह मनोवैज्ञानिक समस्या आती ही है। आपने अच्छा चित्रण किया है

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