कितने किरदार
(ग़ज़ल)
हो कर मायूस सब बेज़ार बैठे हैं,ले डिग्री की गठरी बेक़ार बैठे हैं ।
रोजग़ार समा गया सत्ता की आगोश में,
सिर्फ़ मैं नहीं मेरे कितने यार बैठे हैं ।
बदलना ही होगा समाज की सोच अब,
जंग तो छेड़ो हम तैयार बैठे हैं ।
निकले किस गली से घर की बहूं-बेटियाँ,
हर तरफ़ ज़िस्म के खरीदार बैठे हैं ।
क़र्म करो ऐसा कि हो फ़क्र करे तुझ पर,
तुम पे हँसने को तेरे रिश्तेदार बैठे है ।
एक-तरफ़ा प्यार वैसा ही होता जैसे,
नाव इस तरफ़ माँझी उस पार बैठे हैं ।
लैलाओं का चक्कर छोड़ो लक्ष्य पे फोकस करो,
कितने मज़नूं यहाँ इश्क़ में बीमार बैठे हैं ।
जिससे भी हाथ मिलना ज़रा परख़ना 'सत्तू'
मानव के अंदर कितने किरदार बैठे हैं ।
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