बच्चे का दिल दुखा दिया
(संस्मरण)
बात कुछ दिन पहले की है ।हम दोनों कार में बाजार जा रहे थे ।अजमेरी गेट से चौड़े रास्ते के सिग्नल पर लाल लाइट में रुके तो एक दस -बारह साल का बच्चा गाड़ी के पास आकर बाॅल पैन दिखाकर बोला, "आंटी लेलो ।पहले तो मैने इशारे से मना कर दिया, लेकिन बहुत कहने पर शीशा खोलकर पूछ ही रही थी कितने का है? वो बोला दस रुपये का ।उसने दो पैन जरा से खुले शीशे से अंदर कर दिए ।इतने में ही हरी बत्ती जल गई और हड़बड़ा कर मैने शीशा बंद किया तो उसका एक पैन टूट गया ।मेरी मजबूरी थी, क्या करती ।मन बहुत दुखी हुआ ,पर क्या करती ।ट्रेफिक ज्यादा था इसलिए आगे बढ़ना पड़ा।रामलीला मैदान में गाड़ी पार्क की और जल्दी से बाहर आकर चौराहे तक गई भी ताकि वो दिखाई दे तो उसे टूटे पैन का हर्जाना दे दूँ और पैन भी लेलूँ ,लेकिन वो तो आस पास कहीं नजर ही नहीं आया।बाजार में भी मेरा मन अशांत ही रहा ।मुझे अभी भी उसके लिए पछतावा हो रहा है ।
जब आपने गांधी दिवस पर आलेख की बात की तो स्वतः ये घटना याद आ गई कि मैने एक गरीब का दिल दुखाया।वो बच्चा जहाँ भी हो, मुझे क्षमा करे ।
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पता:
श्रीमती सुशीला शर्मा
जयपुर (राजस्थान)
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Awesome 👍
ReplyDeleteYou writing is great.
You use so simple language that any layman can read and understand it.