ये दुनियाँ
(कविता)
ये दुनियाँ हमने डटकर देखी।
रोकर देखी,हँसकर देखी।।जाने कितने रंग लिये यह,
गिरगिट लगे, परखकर देखी।।
कभी जिन्दगी लगे अगन- सी,
बन के लोहा तपकर देखी।
कभी जिन्दगी कोमल इतनी,
छूते ही ये बिखरकर देखी।
कभी रेंगे न जूँ कानों में,
माइक से चिल्लाकर देखी।
दहशतगर्दी भी दुनियाँ में,
डरते,सहम-सहमकर देखी।
बात-बात पर अड़ें,बिगड़ते,
जुल्म बड़े,ये सहकर देखी।।
पत्थर दिल ये नहीं पसीजें,
मिन्नत ,तड़प-तड़प कर देखी।
बावजूद यहाँ निष्ठा, नेकी,
चलती दुनियाँ ,जिस पे देखी।
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