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Monday 23 December 2019

ये दुनियाँ (कविता) - नरेन्द्र श्रीवास्तव

ये दुनियाँ
(कविता)
ये दुनियाँ हमने डटकर देखी।
रोकर देखी,हँसकर देखी।।

जाने कितने रंग लिये यह,
गिरगिट लगे, परखकर देखी।।

कभी जिन्दगी लगे अगन- सी,
बन के लोहा तपकर देखी।

कभी जिन्दगी कोमल इतनी,
छूते ही ये बिखरकर देखी।

कभी रेंगे न जूँ कानों में,
माइक से चिल्लाकर देखी।

दहशतगर्दी भी दुनियाँ में,
डरते,सहम-सहमकर देखी।

बात-बात पर अड़ें,बिगड़ते,
जुल्म बड़े,ये सहकर देखी।।

पत्थर दिल ये नहीं पसीजें,
मिन्नत ,तड़प-तड़प कर देखी।

बावजूद यहाँ निष्ठा, नेकी,
चलती दुनियाँ ,जिस पे देखी।
-०-
संपर्क 
नरेन्द्र श्रीवास्तव
नरसिंहपुर (मध्यप्रदेश)  
-०-

***
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