मैं नारी हूँ
(कविता)
मैं विधाता की सर्वश्रेष्ठ कृति हूँ
सृजना हूँ मै प्रकृति हूँ
मुझ में समाया है घर संसार
मुझसे रौशन है घर द्वार
हजारों बंदिशें मुझ पर
हैवान भेड़ियों की पैनी नजर
मेरा वजूद मिटाने को आतुर
सदियों से ही सताई गई
थी योग्य पर भोग्य बताई गई
मेरी ख़्वाहिशों को सदैव रौंदा गया
कभी जन्म से पहले मारी गई
कभी वहशी दरिन्दों से
मेरी अस्मिता चिथड़े चिथड़े हुई
सब छीन कर भी
हैवानों तरस नहीं आया
मेरी देह को सरेआम जलाया
कोई बताए मेरी खता क्या है
नारी देह होना ही सजा है।-०-
पता:
जयंती सिंह लोधी
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