संस्कार
(लघुकथा)
(लघुकथा)
भाभी नीना पहली बार अपनी ननद मालती के यहाँ खाने पर गई नीना बड़ी शर्मीली सी फालतू किसी से न बात करने वाली लाज,संकोच और संस्कार में बंधी सबकी बातें बड़े प्यार से सम्मान से और चेहरे पर मधुर,मोहक,प्यारी मुस्कान लिए सुन रही थी,तभी मालती का देवर कमरे में आया और बोला-"खाना सटक लिया"?उसे समझनहीं आया कि वो क्या और किससे कह रहा है वह फिर बोला-"मैं तुमसे कह रहा हूँ?
नीना ने कहा- "जी माफ कीजिए मैं सुन नहीं पाई,अब फिर से कह दीजिए "
देवर- "मैं कह रहा हूँ कि क्या तुमने खाना सटक लिया"?
नीना सन्न रह गई ये सब सुनकर फिर भी खुद को संयत रखकर वो बोली-"जी मैंने तो खा लिया क्या आपने खाया"?
जवाब में हाँ आया।
सब लोग अपने घर लौट आये दो दिन बाद मालती घर आई और अपनी माँ से बोली -" माँ भाभी की तमीज देखो मेरी ससुराल में जाकर मेरे देवर को जिनको हम भैया- भैया कहकर आगे- पीछे घूमते हैं उनको ये बोलीं कि क्या तुमने खाना सटक लिया"मजाल है कि हम जरा भी उनको उलटा सीधा बोल दें हम उनको आँख उठाकर भी नहीं देखते इतना मान करते हैं और एक ये महारानी हैं जो हमारे इतने संस्कारी इतने बड़े इज्जतदार लोगों के बीच गईं और उनको अपने फटीचर घरवालों के संस्कार दिखाकर आईं और हाँ सुनो खबरदार !है जो अगर आईन्दा कभी मेरे ससुराल में कदम भी रखा था,नहीं चाहिए हमें ऐसी कुसंस्कारी.... ।
तभी पडोसन ने दरवाजा खटखटाया नीना ने दरवाजा खोला वो बोली-" मैंने देखा कि मालती आई है तो मिलने चली आई नीना ने उनके पैर छुए और ससम्मान अन्दर ले आई वो अन्दर आते ही बोली मालती की सास को बोली-"कितनी संस्कारी बहु है आपकी, सम्मान करना तो कोई इससे सीखे"।
"काश़ !इस तरह के थोड़े भी संस्कार आपने मालती को दिए होते तो आज ये अपने देवर और देवरानी से लड़कर घर के बँटवारे की बात को लेकर पूरी कॉलानी में बवाल मचाकर आज यहाँ न बैठी होती"
मालती की शक्ल देखने लायक थी।
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डॉ० भावना कुँअर
सिडनी (ऑस्ट्रेलिया)
सिडनी (ऑस्ट्रेलिया)
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