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Wednesday, 11 December 2019

शिव कुमार 'दीपक' की कुण्डलिया (कुण्डलिया) - शिव कुमार 'दीपक'


शिव कुमार 'दीपक' की कुण्डलिया
(कुण्डलिया)
माखन के वे दिन कहां, कहां नंद के लाल ।
मोबाइल के लालची, आज बाल गोपाल ।‌‌।
आज बाल गोपाल, दही माखन को भूले ।
मोबाइल में गेम, गीत सुन सुनकर फूले ।।
गुटका पान पराग, शौक उनके बचपन के ।
'दीपक'आते याद,दिवस मिश्री माखन के ।। -1

'होरी' आया शहर में, हुआ गांव से तंग ।
काम कोठियों में मिला, पोत रहा है रंग ।।
पोत रहा है रंग, साथ बेटा गोबर है ।
सोने को फुटपाथ, ओढ़ने को चादर है ।।
हाथ बटाती रोज, साथ पत्नी है भोरी ।
सबने पाया काम,शहर में खुश है होरी ।।- 2

समता की सौहार्द की, बड़ी जरूरत आज ।
धर्म-द्वेष की आग में, जलने लगा समाज ।।
जलने लगा समाज, आग बढ़ती जाती है ।
घूम रहे बेखौफ, जिन्हें हिंसा भाती है ।।
पड़ी, संत रैदास , तुम्हारी आवश्यकता ।
हमें चाहिए प्रेम , और आपस में समता ।।-3

घर का मुखिया हो अगर, दीन-हीन कमजोर ।
या फिर दारूबाज हो , या हो सट्टाखोर ।।
या हो सट्टाखोर , कबाबी और जुआरी ।
कैसे वह परिवार, कहा जाए संस्कारी ।।
वह बेचारा पात्र , नहीं होता आदर का ।
मुखिया से माहौल, बिगड़ जाता है घर का ।।-4

तोते सारे बाग के , माली रहा उड़ाय ।
दो पग वाले बैठ कर, रहे फलों को खाय ।।
रहे फलों को खाय,न कोई उनको खटका ।
माली है बेभान, इन्हीं तोतों में अटका ।।
उजड़ेगा यह बाग, इन्हीं चोरों के होते ।
माली अब तो चेत , उड़ा मत केबल तोते ।।-5

घर आए आनंद से, मत नाहक मुख मोड़ ।
अन्न मिला है भाग्य से,थाली में मत छोड़ ।।
थाली में मत छोड़ , अन्न जीवन देता है ।
क्रोध रोष को रोक, ज्ञान को हर लेता है ।।
रहे धीर गंभीर , सही निर्णय ले पाए ‌।
अमन-चैन सुख-प्रेम,स्वतःउसके घर आए ।।-6

करिए हर कोशिश यही, टले रार तकरार ।
हँसी-खुशी पलती रहे, रहे दिलों में प्यार ।।
रहे दिलों में प्यार,थाम कर चलिए उंगली ।
हँसो, उठेंगीं साथ , रोइए, होगी एकली ।।
दुख देता एकांत ,जमाने का दुख हरिए ।
रहे जमाना साथ, काम ऐसे ही करिए ।।-7
-०-
क्रमशः ... २१ दिसंबर २०१९
-०-
शिव कुमार 'दीपक'
हाथरस (उत्तर प्रदेश)
-०-




***
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