शहर में
(ग़ज़ल)
चली नफरतों की हवा फिर शहर में
उठा आफतों का धुआँ फिर शहर में।
जलाया कभी जो चरागे मुहब्बत
वही तो बुझा सा दिखा फिर शहर में।
भुला कर दिलो से पुरानी कहानी
उठाया नया फलसफा फिर शहर में।
किसी को नहीं है किसी से शिकायत
भला यूँ उठा जलजला फिर शहर में।
बढी़ दूरियां दरम्यां आज उन से
हुआ आमना- सामना फिर शहर में।
किया तो किसी ने दगा यार बन के
कोई तो हुआ बेवफा फिर शहर में।
चला है मुफलिसी मिटाने हमारी
मसीहा बना है नया फिर शहर में।
फिजां में घुला है नशा आशिकी का
खुला है नया मयकदा फिर शहर में।
मिली है हमें तो खुदा की इनायत
बढा है तभी रूतबा फिर शहर में।
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पता:
गोविंद भारद्वाज
अजमेर राजस्थान
गोविंद भारद्वाज
अजमेर राजस्थान
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