मावठा
(कहानी)
(कहानी)
इस बार ऐसा लग रहा था कि वर्षों के बाद सपने साकार होंगे। खेत में मूंग,बाजरा,मूंगफली की फसल लहरा रही थी। खेत इस बार सोना उगलेगे ऐसा तय सा था।
रण में एक तो वैसे भी बारिश कम, ऊपर से हर दूसरे तीसरे साल सूखा। 'यहां अब बचा ही क्या है?'- कह कर बच्चे घर छोड़कर शहर चले गए थे। गांव में बचे थे तो बस पति- पत्नी। दीपावली की, गर्मियों की छुट्टियों में वह बच्चों को न्योता देते घर आने का और काम का बहाना बनाकर वह टाल देते थे। मंदी की मार शहर में उनसे भी सहन नहीं हो रही थी। बच्चे अब चाहते थे कि मां-बाप घर खेत बेचकर पैसे उनके हवाले कर शहर में बस जाएं। पर पति पत्नी खेत खलिहान गांव छोड़कर जाने को राजी न थे।
इस बार दीपावली पर बच्चे घर आए, मां की इच्छा थी। बाप ने फोन लगाया बच्चों ने बहाने बनाएं। आग्रह बढा तो बच्चे बोले- 'धंधा चल नहीं रहा, मंदी बहुत है आप दीपावली पर कुछ नेग दे रहे हो तो आ जाते हैं।'
बाप मान गया आखिर में तो सब बच्चों का ही तो है! बच्चे आ गए दीपावली मन गई। मां-बाप के चरण छूकर लाख-लाख रुपए लेने का वादा भी ले लिया बाप से। बाप भी निश्चिंत था। धरती से सोना जो उगलने वाला था।
कुछ ही दिनों में कटाई का समय भी आ गया लाखों की मजदूरी और अन्य खर्चों के बाद कटाई हो गई। सोना खेतों में पडा ही था कि मावठे की बारिश हो गई। सारा सोना मिट्टी में बदल गया। सारे सपने पानी में बह गए।
मगर वादा तो वादा था बाप ने पत्नी के गहने गिरवी रख कर बच्चों को पैसे भी दे दिये। मन ही मन बोला- 'इससे तो सूखा ही अच्छा था भगवान, ना कटाई के पैसे जेब से जाते न गहने गिरवी रखना पडते।
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पता:
रण में एक तो वैसे भी बारिश कम, ऊपर से हर दूसरे तीसरे साल सूखा। 'यहां अब बचा ही क्या है?'- कह कर बच्चे घर छोड़कर शहर चले गए थे। गांव में बचे थे तो बस पति- पत्नी। दीपावली की, गर्मियों की छुट्टियों में वह बच्चों को न्योता देते घर आने का और काम का बहाना बनाकर वह टाल देते थे। मंदी की मार शहर में उनसे भी सहन नहीं हो रही थी। बच्चे अब चाहते थे कि मां-बाप घर खेत बेचकर पैसे उनके हवाले कर शहर में बस जाएं। पर पति पत्नी खेत खलिहान गांव छोड़कर जाने को राजी न थे।
इस बार दीपावली पर बच्चे घर आए, मां की इच्छा थी। बाप ने फोन लगाया बच्चों ने बहाने बनाएं। आग्रह बढा तो बच्चे बोले- 'धंधा चल नहीं रहा, मंदी बहुत है आप दीपावली पर कुछ नेग दे रहे हो तो आ जाते हैं।'
बाप मान गया आखिर में तो सब बच्चों का ही तो है! बच्चे आ गए दीपावली मन गई। मां-बाप के चरण छूकर लाख-लाख रुपए लेने का वादा भी ले लिया बाप से। बाप भी निश्चिंत था। धरती से सोना जो उगलने वाला था।
कुछ ही दिनों में कटाई का समय भी आ गया लाखों की मजदूरी और अन्य खर्चों के बाद कटाई हो गई। सोना खेतों में पडा ही था कि मावठे की बारिश हो गई। सारा सोना मिट्टी में बदल गया। सारे सपने पानी में बह गए।
मगर वादा तो वादा था बाप ने पत्नी के गहने गिरवी रख कर बच्चों को पैसे भी दे दिये। मन ही मन बोला- 'इससे तो सूखा ही अच्छा था भगवान, ना कटाई के पैसे जेब से जाते न गहने गिरवी रखना पडते।
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पता:
विवेक मेहता
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