जल संरक्षण
(कविता)
बहती हुई सरिताओं की कलकल बचाएंगे।
हम जल बचाएं जल बचाएं जल बचायेंगे ।।
अपने वनों की कोई क्षति हम न सहेंगे।
करना है सुरक्षित जो जमीं करके रहेंगे ।।
जंगल हो या पहाड वृक्ष लहलहाएंगे ।
शहरों में भी हर सिम्त पेड़ सिर उठाएंगे।।
कटती हुई जमीन का हम तल बचाएंगे ।
हम जल बचाएं जल बचाएं जल जाएंगे।।
हमने ही तो जमीन को छलनी बना दिया ।
कर कर रूराख सीने में पानी सुखा दिया ।।
प्यासी धरा तड़प रही पानी के वास्ते ।
नदियां तरस गई है जवानी के वास्ते ।।
गहराई में जमीन की हलचल बचाएंगे।
हम जल बचाएं जल बचाएं जल बचायेंगे।।
जिन्दा रहे ना घाट ही कुए भी अब कहाँ ।
जल चारसौ फिट नीचे बह रहा है अब यहां।।
हर गांव में आओ नए पोखर बनाया हम ।
तालाब करें जिंदा कमल फिर खिलाए हम ।।
खुशियों के जिंदगी में शेष पल बचाएंगे ।
हम जल बचाएं जल बचाएं जल बचायेंगे।।
बढ़ती हुई ये गर्मी जमीं को जला रही ।
पानी नहीं रहा तो सेहत तिलमिला रही।।
गुम सारे हो गए हैं देखो ताल तलैया ।
बेरोजगार हो गए नावों के खिवैया ।।
हल इसका एक ही है कि जंगल बचाएंगे।
हम जल बचाएं जल बचाएं जल बचाएंगे ।।
बरसात का जल व्यर्थ ही जाने न ये पाए ।
जलती धरा को और जलाने न ये पाए ।।
जब घर का रहे घर में खेत का हो खेत में।
खोजेगे निकल आएगा जल लोगों रेत में ।।
जीना है वर्तमान में पर कल बचाएंगे ।
हम जल बचाएं जल बचाएं जल बचाएंगे।।
दो बाल्टी की जगह एक से नहाएं हम ।
धोने में गंदे कपड़े नही जल बहाएं हम ।।
रिसता हुआ बहता हुआ जल व्यर्थ न जाए ।
कतरा हरेक पानी का जीवन को बचाए ।।
हम बूंद बूंद जल की मुसलसल बचाएंगे ।
हम जल बचाएं जल बचाएं जल बचायेंगे ।।
पानी के लिए भीख का बर्तन लिए खड़े ।
ऐसा न हो के आए नजर छोटे और बड़े ।।
दुत्कारे जाएं एक भिखारी की तरह हम ।
दंगे हों जल के वास्ते ढ़ाते रहें सितम ।।
दस्तार नर की नारी का आँचल बचाएंगे ।
हम जल बचाएं जल बचाएं जल बचाएंगे ।।
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अख्तर अली शाह "अनन्त"
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