नि:शब्द
(कविता)
नि:शब्द हूं स्तब्ध हूं,
तेरी मानवता और हैवानियत देखकर।
मैंने ही तुम्हें जन्म दिया है,
नौ माह अपने गर्भ में पालकर,
दर्द सहकर,
अपनी दूध पिलाकर,
तुझे किया है बड़ा।
इसलिए कि,
तुम मुझे नोच सको,
मेरा मर्दन कर सको,
अपनी मर्दानगी दिखा सको,
अपनी दरिंदगी दिखा सको,
सरेआम मुझे नीलाम कर सको,
तेरी मानवता और हैवानियत देखकर,
नि:शब्द हूँ,
स्तब्ध हूँ।
-०-
संजय कुमार सुमन
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