स्टाफ
(लघुकथा)
सुरेश एक गाँव का नौजवान . उम्र करीब 18 साल . पिता एक दिन बोले 'सुरेश आज बेलों के जोड़ी ले जाओ और कुंवे वाले खेत पर हल चलाओ . ना-नुकुर के साथ वो हल व दोनों बेलों के साथ खेत पर पहुंचा . बैलों को जोतने के साथ ही मोटे सोटे से बैलों को मारने लगा. उधर से रामू काका जा रहे थे. बोले 'सुरेश हल चला रहे हो'. 'हाँ काका' सुरेश बोला . काका बोले 'बेटा आप का माल की बाप का माल ' सुरेश बोला ' हैं हैं काका बाप का माल . ' तभी ' काका बोलते हुवे रवाना हो गए. कुछ बर्षों बाद सुरेश के पिता गुजर गए . बैल भी बूढ़े होकर मर गए. अब सुरेश के कन्धों पर पूरा भार आ गया. वो एक बूढ़े बैलों की जोड़ी खरीद कर लाया. उनको लेकर खेत जोत रहा था. बैल दो-चार कदम चलते व रुक जाते. सुरेश उन्हें बड़े प्यार से बोलता ' चल मेरे राजा ,चल मेरे बच्चे ,बहुत अच्छे ..आदि-आदि ' उधर से बुजुर्ग रामू काका गुजर रहे थे. बोले 'सुरेश हल चला रहे हो, ये बताओ आपका माल की बाप का माल 'सुरेश बड़े भी गंभीर आवाज में बोला ' काका पिताजी तो गुजर गए , अपना ही माल है.' काका बोले 'तभी-तभी ' और आगे बढ़ गए.-०-
पता:
श्याम मठपालउदयपुर (राजस्थान)
-०-
***
मुख्यपृष्ठ पर जाने के लिए चित्र पर क्लिक करें
No comments:
Post a Comment