नारी! ममता की प्रतिमा
(कविता)
युग -युगांतर से ,सदियो से ही ,
युग -युगांतर से ,सदियो से ही ,
इस धरती पर जन्म लेने वाली नारी ।
ममता की मूर्तिं ,ममता की देवी ।
आज हमारे समक्ष ही,
लज्जित और प्रताड़ित होती है।
आज हमारे बीच से ही ,
किसी एक की असामाजिक ;
आचरण की वजह से ।
आज ममता की कोमल अहसास ,
से सुसज्जित नारी ;
लज्जित और अपमानित होती है।
नारी एक सहनशीलता का सुंदर नाम !
ममता की एक अद्भुत प्रतिमा ,
जिनकी अहसास की अनुभूति से ;
जिनके नाम लेने से ही मन मे ,
श्रद्धा भरी प्यार जाग उठती है ;
मातृ के रूप मे पाकर ।
नारी एक सुकोमल नाम ,
प्यारी सी-फूलों की सुगंध की तरह ,
जिसके लिए मन के आंगन मे ;
ममता की सुगंधित खुश्बू ,
फूलो सी खिल उठती है ;
बहन के रूप मे पाकर ।
नारी एक मधुर मिठास का नाम ,
गहरी विश्वास की मूरत ;
जिसे देखने भर से ही ,
हृदय के अन्दर अडिग विश्वास ,
मुख मुद्रा पर मुस्कान बिखर जाती है ;
जीवन संगिनी के रूप मे पाकर ।
नारी एक कोमल अनुभव का नाम ,
जिसकी अनुभूति से ;
हमारे मन मस्तिष्क के पटल पर ,
मन का प्रेम प्रफुल्लित हो उठता है ।
स्नेह की खनखनाहट बज उठती है ,
कन्या संतान के रूप मे पाकर ।
सहनशीलता की देवी होने के बावजूद नारी ,
आज लज्जित होती है !
अपमानित होती है !
प्रताड़ित होती है !
आज हमारा समाज स्तब्ध कयों है ?
क्या आज हमारा समाज निष्ठुर हो गया है ?
क्या हमारा समाज हमे उत्तर देने की !
जिम्मेदारी ले सकती है ?
शायद नही !
कभी नही !-०-
सुरेश शर्मा
-०-
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सुंदर रचना
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