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Wednesday, 29 January 2020

बनाया रेत का घर है (ग़ज़ल) - मृदुल कुमार सिंह

बनाया रेत का घर है
(ग़ज़ल)
सुनामी का, न तूफां का, न ही भूचाल का डर है।
चलायी नाव कागज़ की, बनाया रेत का घर है।

बहुत रोमांच आता है, कभी सुनना बुजुर्गों से
कहानी उस हवेली की जो दिखती आज खंडहर है।

नहीं कुछ राम लाये थे, नहीं कुछ ले गया रावण,
जहाँ को जीत कर के भी गया खाली सिकंदर है।

न सोने से, न चांदी से, भरा माँ की दुआ से है,
कभी चाहो तो आ जाना,मेरे घर का खुला दर है।

खिला गुड संग पानी के जो सबने हाल पूछा तो,
लगा के गाँव तो मेरा शहर से लाख बहतर है।

है पत्थर दिल, जुबां कडवी, नहीं है आखंँ में पानी
हुआ बीमार यूँ इंसा कि जीते जी गया मर है।

न वो अंधी, न वो बहरी, न हीं अंजान वो मुझ से,
हकूमत है जरा उसके, चडा रहता नशा सर हे।
 -०-
पता:
मृदुल कुमार सिंह
अलीगढ़ (अलीगढ़) 

-०-


***
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