प्रदूषण
(दोहा)
कंद मूल फल खाय के, हुए बड़े बलवान।
गरल प्रदूषण का नहीं, मिलता नाम निशान ।।
डाल पात फल फूल सब,मिलना था आसान।
कंद मूल और छाल की, वैद्यौ को पहिचान।।
शुद्ध वायु और शुद्ध जल, करते सब उपयोग।
बीमारी होती नहीं,सुखी रहें सब लोग ।।
वायु भूमि जल शुद्धि का ,राखै सबही ध्यान।
सुखी रहें परिवेश सब, कहते थे विद्वान ।।
वायु भूमि जल अग्नि नभ, करते जगत प्रकाश।
सभी देवता तुल्य है, पूरण करते आस।।
शुभ वृक्षों के नाम से, दीने देव बनाय ।
पूजा की तब प्रेम से,आसन हृदय लगाय ।।
पाचौ तत्त्व मिलाय कर,रूप दिया भगवान।
तब पूजा अति प्रेम से,हुआ जगत कल्याण।।
रक्षा निज परिवेश की, होती अपने आप।
प्राणी यदि सुख से रहै, रहे न आपाधाप ।।
दुखद प्रदूषण की भई, यूं चौतरफा मार।
जंगल सब ही कटि रहे,मानव है लाचार।।
नदियां जब मैली भई, फैल रहे हैं रोग ।
बिना मौत के मर रहे,जीव जन्तुऔर लोग।।
कृषक सबई अंधे भये, लालच का सब खेल।
फल-फूलों से हो गया, इंजेक्शन का मेल।।
दूध दही घी में हुआ,सफल मिलावट खेल।
क्रीम और मक्खन सभी,नकली होते सेल।।
सब ही लालच में फंसे,किसको है परवाह।
मूरख से मूरख मिले,कोन बता्वै राह।।
वृक्षा रोपड़ के लिए,बहु धन शासन देय।
खानापूरी विज्ञ जन, कागज पर कर लेय।।
वृक्षों का धन खाय के, फूले नहीं समाय।
नजर न काऊ से मिलै, कैसे जान बचाय।।
नहीं मिलेगा शुद्ध जल,या भोजन भंडार।
जहरीली वायू मिलै,मरघट होंगे द्वार ।।
सब दुनियां में है रहौ,घोर प्रदूषण शोर।
सब कर रहे उपाय पर,मिलता नहीं निचोर।।
दुखद प्रदूषण रोग का,सब जन करो उपाय।
वरना फिर पछिताएंगे, विधि नहीं करें सहाय।
हरी भरी लकड़ी रहै ,जीवन देत बचाय ।
भोजन पानी ऊर्जा, वृक्षों से मिल जाय।।
वृक्षों से ही मिटत है, प्रदूषण का रोग ।
जल थल नभ बिचरत फिरै,ख़ुशी रहै सब लोग।।
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राम सिंह 'साद'
मथुरा (उत्तरप्रदेश)
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कलापक्ष कमजोर होने के वाबजूद सुंदर भावपक्ष रचित दोहे । हार्दिक बधाई
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