(लघुकथा)
अपने पति मंगतराम के श्राद्ध में ग्यारह ब्राह्मणों को उसने बुलाया था। श्राद्ध का सारा इंतजाम हो चुका था और वह पूड़ियाँ तलने बैठी थी । गर्म तेल में पूड़ी डालते हुए उसके आँसू छलक आए ।
'जिंदगी भर खटता रहा ।
तीन जवान बेटियों के ब्याह की चिंता में कभी चैन से सो न सका और मर कर भी बेटियों का इंतजाम कर गया। दुर्घटना में मरे और लापता हुए व्यक्तियों को सरकार पांच पांच लाख रुपया मुआवजा .........
"अम्मा ,बापू !"
उसके पूड़ियाँ तलते हाथ वहीं के वहीं थम गए। दुर्घटना में लापता हुआ पति सामने बैसाखियों के सहारे खड़ा था। उसके मन में हौल सा उठा ।
"अब श्राद्ध किसका करे? पाँच लाख रुपयों का या बेटियों की जवानी का???
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