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Sunday, 19 January 2020

लानत (कविता) - व्यग्र पाण्डे


लानत
(कविता)
घर बदले जाति-बिरादरी के कारण
सामान बदले वास्तु-दोष के कारण
लिवास बदले, मित्र भी खास बदले
बहुत कुछ बदला कारण-अकारण
सरकारें बदली दरकारें बदली तू ने
पर बहशीपन ना बदला अपना तूने
फर्क होता जानवर इंसान में कुछ तो
फिर क्यूँ नहीं, स्वयं को बदला तूने
युग बदले बहुत कुछ बदला फिर भी
पर दूषित केंचुली को ना बदला तूने
खुद बदल जाता धरा स्वर्ग बन जाती
अफ़सोस जिसको नर्क में बदला तूने
-०-
व्यग्र पाण्डे
सिटी (राजस्थान)

-०-

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