आत्महत्या
(लघुकथा)
आधी रात बीत चुकी थी | गली के कुत्ते अपना-अपना राग अलाप रहे थे | अनाथालय में सन्नाटा पसरा था, कि तभी मुख्यद्वार की छोटी खिड़की खुली | खिड़की से अनाथालय की संचालिका, गार्ड और एक 15-16 वर्ष की लड़की सहित कुल तीन परछाईयाँ निकलकर एक चमचमाती कार में समा गईं | कार तेजी से अंधेरा चीरती हुई बाहर मुख्यमार्ग पर गुम हो गई... और फिर सीधे मंत्रीजी के विश्रामगृह के सामने ही प्रकट हुई |
विश्रामगृह से एक हृदय विदारक जोरदार चीख निकली और सारा शहर खामोश हो गया | रात बीत चुकी थी, सुबह होने को थी | मंदिरों में शंख फुकना शुरू हो चुके थे व मिस्जिदों के लाउंड़स्पीकर जोर-जोर से चिल्ला रहे थे | कुलमिलाकर चारों ओर धर्म का डंका बज रहा था | डंका बजना बंद हुआ तो सारा शहर काम पर निकल पड़ा |
अनाथालय के सामने साइरन बजाती तमाम गाडियां दस्तक दे चुकी थीं | पुलिसिया कार्यवाही शुरू हो चुकी थी, क्योंकि पुलिस को पास के ही एक नाले से अनाथालय की एक 15-16 साल की लड़की की लाश जो मिली थी |
मीडिया रिपोर्ट की मानें तो लड़की परीक्षा को लेकर डिप्रेशन में थी और इसी वजह से उसने आत्महत्या करली... मामूली - सी खानापूर्ती के बाद पुलिस ने भी केस की फाईल बंद कर दी !
No comments:
Post a Comment