पहाड़
(लघुकथा)
दुर्गाराम नाम का एक आदमी एक छोटे से गांव में अपने छोटे से परिवार के साथ एक घास फूस की बनी झौंपड़ी में जीवन यापन कर रहा था। समय बीतता गया, मेहनत मजदूरी करके नित रोटी पानी का जुगाड़ करके अपने बूढ़े माँ बाप की सेवा भी करता था। इस रोज की दिनचर्या में उसकी पत्नी टीपू पूरा साथ दे रही थी।
शादी के पांच वर्ष बाद विधाता ने टीपू की कोख में वंश का बीज डाल दिया।
चार महीने का जब भ्रूण हुआ तब से वह आंगनवाड़ी केंद्र से अपना देखरेख करवाने लगी। बच्चे की आशा में घरवाले सभी खुश नजर आ रहे थे। सभी नये मेहमान के आगमन की प्रतीक्षा में लगे हुए थे।
आखिर समय आ ही गया, टीपू के नवम महिना लग गया था, सभी उसका ध्यान रखने लगे। बीस दिन बाद टीपू के दर्द उठना शुरू हुआ तो उसने अपने पति दुर्गाराम को बताया। दुर्गाराम उसको लेकर गांव के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचा। मगर स्थिति ये हो गई कि नर्स ने बताया कि अभी के अभी इसे शहर के बड़े अस्पताल में लेकर जाना पड़ेगा वरना जच्चा बच्चा सुरक्षित न रह पाएंगे।
दुर्गाराम अब करे तो क्या करे, क्योंकि उस गांव से शहर जाने के लिए कोई सीधा मार्ग या रोड बना हुआ नहीं था, कारण की वह गांव पहाड़ की तलहटी में बसा हुआ था। पहाड़ को पार पैदल करने के बाद शहर की सड़क मिलती थी।
दुर्गाराम हिम्मत जुटाकर अपनी पत्नी को पीठ पीछे झोली बनाकर बैठाया और पहाड़ पर चलने लग गया, उस दौरान टीपू के दर्द बढ़ता गया पर क्या करे विधि के विधान को कोई बदल नहीं सकता। पथरीले संकड़े रस्ते से पहाड़ की चोटी तक पहुंच गया। अब नीचे उतरते वक्त उसका पैर फिसल गया।क्योंकि उसकी नजर उस सड़क को ढूंढ रही थी, कहते है "सावधानी हटी तो दुर्घटना घटी"। दोनों ही नीचे गिरकर लुढ़कते लुढ़कते नीचे आ पहुंचे। चोटिल तो होने ही थे। तुरन्त दुर्गाराम खड़ा होकर पत्नी के पास गया तो देखा कि पत्नी लहूलुहान अवस्था में बेहोश पड़ी हुई थी। आसपास के लोगो की मदद से अस्पताल ले जाते वक्त मार्ग में ही टीपू ने दम तोड़ दिया, इस संसार को अलविदा कर चली गई। थोड़े महीनों के बाद दुर्गाराम पत्नी वियोग में क्षीण होता गया और उसने भी अपने प्राण त्याग दे दिए। मगर जाते हुए उसने कहा - गांव में सड़क होती तो मेरी पत्नी मरती क्या?
ये पहाड़ नहीं होता तो पत्नी मर जाती क्या?
यदि इस पहाड़ को काटकर सरकार सड़क बनाती तो मेरी पत्नी मरती क्या?
आप सबसे निवेदन है कि गांव से शहर तक पहाड़ को काटकर सड़क जरूर बना देना, ताकि कोई भी मरे नही। तभी आत्मा को शांति मिलेगी।
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पता
छगनराज रावपता
जोधपुर (राजस्थान)
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