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Tuesday 21 January 2020

काश ऐसा होता (कविता) - दिनेश चंद्र प्रसाद 'दिनेश'

काश ऐसा होता
(कविता)
काश ऐसा होता
क्या ही अच्छा होता
हर दिल में प्यार होता
काश ऐसा होता
पंडित मस्जिद में अज़ान देता
मुल्ला मंदिर में घंटी बजाता
हर हिंदू के घर में
ईद के सेवइयां बनती
हर मुस्लिम के घर
होली का गुलाल उड़ता
काश ऐसा होता
क्या ही अच्छा होता
हर दिल में प्यार होता
हर दिल में खुशियां होती
पंडित कुरान की आयतें पढ़ते
मौलवी गीता का ज्ञान सुनाते
हर घर में दिवाली होती
हर घर में शबे बरात होता
क्या ही अच्छा होता
काश ऐसा होता
भूखा नहीं सोता कोई पड़ोसी
चाहे स्वयं भूखे राह जाते
धर्म और मजहब से पहले
इंसान की इंसानियत होती
क्या ही अच्छा होता
हर दिल में प्यार होता
काश ऐसा होता
जब सब हैं एक मालिक के बंदे
तो क्यों करते हैं अजब गजब से धंधे
हर त्यौहार मिलकर मनाते
एक दूसरे को खुशियां बांटते
क्या ही अच्छा होता
काश ऐसा होता
दाढ़ी रखते पंडित
मौलवी करते टीका चंदन
कलमा पढ़ते पंडित
मौलवी करते इसका वंदन
काश ऐसा होता
तो होता नहीं क्रंदन
कितना सुंदर यह मेल होता
भारत के कोने-कोने में खुशहाली होता
दुनिया का सरताज कहलाता
काश ऐसा होता
क्या ही अच्छा होता
"दिनेश" का विचार
जन-जन को भाता
काश ऐसा होता-०-
पता: 
दिनेश चंद्र प्रसाद 'दिनेश'
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
-०-


***
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