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Tuesday, 21 January 2020

*मुझको किसान बना दो न * (कविता) - शिल्पी कुमारी

*मुझको किसान बना दो न *
(कविता)
हे ईश्वर
जपती रहती हूँ मैं ,
गणित के फॉर्मूले दिन-रात
अच्छे नहीं लगते मुझको,
फिजिक्स के सवाल
बालक मैं भोली-भाली नादान
रजवाड़ों का मेरा खानदान
मम्मी कहती बन जा डॉक्टर
पापा कहते कलेक्टर
मेरे दिमाग में तो
चलता रहता है कोई ट्रैक्टर
टर-टर करता मेढक
खिड़की पर बैठे ,
जब मैं पढ़ने बैठूं
अजब-गजब जाने कैसे -कैसे
करता वो करतब ,
छोड़ पढ़ाई मैं तो बस उसको देखूँ
भारी भड़कम अंग्रेजी
जैसे कोई बुलडोजर
करूँ कैसे पढ़ाई जब खेत पड़ा बंजर
रात के सन्नाटे में गाता जुगनू
सुनो उसकी आवाज
बेरोजगार बिजूका खड़ा खेतों में पूछता,
करूँ किसकी रखवाली आज
अब धरती न उगलती अनाज
बीज पड़े -पड़े सड़ते,
माटी से मिलने को तरसते
चारों पहर रोता बिजूका,
अब न लगता विकराल
कहाँ खो गए धरती के सुहाग
सुन इनका दर्द भयानक
कैसे करूँ पढ़ाई?
हे ईश्वर खेतों को बना दो किताब
पढ़ लिख बनूँगी किसान
खेत की क्यारी पर फूलों सी लहराऊंगी
बुलबुल सा गीत सुनाऊँगी
कृषि विद्यालय में पढ़ लिख
भारत को कृषि प्रधान बनाऊंगी
सोने सी होगी खेतों में गेहूँ की बाली
घर-घर होगी खूब हरियाली
माटी उगलेगी जब सोना
नहीं होगा किसान को रोना
हे ईश्वर
कृषि विद्यालय में करवा कर दाखिला
खाद बीजों का ज्ञान दिलवा दो न
मुझको किसान बना दो न
भारत को फिर
सोने की चिड़िया बना दो न ।
-०-
पता
शिल्पी कुमारी
उदयपुर (राजस्थान)
-०-

***
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