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Friday, 14 February 2020

रणचंडी बनना होगा (कविता) - छगनराज राव

रणचंडी बनना होगा
(कविता)
पापी दुष्टों का वध करना होगा
नारी को रणचंडी बनना होगा

तुम दुर्गा कालका भवानी हो
तुम चामुंडा सिंह असवारी हो
नारी तुम सबला हो अबला कैसे
वैष्णो ने भैरों को मारा कैसे
ऐसे रौद्र रूप को जगना होगा
नारी को रणचंडी बनना होगा

बाधाओं का रुख तुम आज मोड़ दो
दरिंदों को सबक सिखा के छोड़ दो
तुमको हाथ छुए तो हाथ तोड़ दो
जो आँख दिखाए तो आँख फोड़ दो
चाकू खंजर अपना रखना होगा
नारी को रणचंडी बनना होगा

पद्मनी थी जो सूरत न दिखने दी
प्राण दिए पर अस्मत न लूटने दी
लक्ष्मी के हाथों में तलवारें थी
झुंझी पर झाँसी को ना झुकने दी
वीरांगनियों जैसे पलना होगा
नारी को रणचंडी बनना होगा

बहुत सह लिया इन अत्याचारों को
ऐसे मत छोड़ों उन हत्यारों को
हर जन को पड़ जाए मालूम यहां
ऐसा संशोधन हो कानून यहां
भेड़ियों को फांसी लटकना होगा
नारी को रणचंडी बनना होगा

पापी दुष्टों का वध करना होगा
नारी को रणचंडी बनना होगा
-०-
पता
छगनराज राव
जोधपुर (राजस्थान)
-०-

***
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