अब सारी उम्मीदें
(ग़ज़ल)
अब सारी उम्मीदें छोड़ दी मैंने
वो प्यासी आंखें ने निचोड़ दी मैंने
परिंदा इश्क का घायल तो था ही
उसकी साँसें भी तोड़ दी मैंने
गजल हुई या नहीं तुम जानो
बस कुछ कहानियाँ जोड़ दी मै ने
हथेलियां यूँ ही लाल नहीं हुईं
गुलाब की कुछ शाखें मरोड़ दी मैंने
निगाहों का नशा मदहोश किए हैं
जितनी बोतलें थी सब तोड़ दी मै ने
-०-
वो प्यासी आंखें ने निचोड़ दी मैंने
परिंदा इश्क का घायल तो था ही
उसकी साँसें भी तोड़ दी मैंने
गजल हुई या नहीं तुम जानो
बस कुछ कहानियाँ जोड़ दी मै ने
हथेलियां यूँ ही लाल नहीं हुईं
गुलाब की कुछ शाखें मरोड़ दी मैंने
निगाहों का नशा मदहोश किए हैं
जितनी बोतलें थी सब तोड़ दी मै ने
-०-
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