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Thursday, 27 February 2020

हम हो स्वतंत्र (कविता) - डॉ.राजेश्वर बुंदेले 'प्रयास'

हम हो स्वतंत्र
(कविता)
हम हो स्वतंत्र,
हम रहें समृद्ध, संपन्न ।
लिया था जिन्होंने,
अपने हृदय में प्रण।
सीख लेकर संस्कारों की,
त्याग एवं बलिदानों की,
माँ, के निर्देशों को,
गुरुओं के उपदेशों को,
लेकर ताना,बाजी और येसा जैसे मित्रों को ।
चल पड़ा था,
एक वीर ऐसा।
शेर दहाड़ा था,
शत्रुओं पर जैसा।
फूलों की माला और
गीतों की गुंज,
नहीं है यह सच्चा अभिवादन।
विचारों,तत्वों एवं सत्कर्मों का उनके,
गर करे नित , हम सब पालन।
आज ही नहीं,
कल भी रहेंगा।
स्वराज पर हमारा ,
नित ध्वज फहरेगा।
कृषि, जल एवं शिक्षा के क्षेत्र में ,
किया था जिन्होंने अतुलनीय-सा काम ।
जन्म लिया था आज के दिन जिन्होंने,
छत्रपति शिवाजी है,
जिनका नाम ।
करता हूँ, करता रहूँगा मैं उनके,
विचारों एवं तत्वों को,
नित,निरंतर प्रणाम।
नित,निरंतर प्रणाम।
नित,निरंतर प्रणाम।-०-
डॉ.राजेश्वर बुंदेले 'प्रयास'
अकोला (महाराष्ट्र)
-०-

***
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