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Thursday, 27 February 2020

यही बसंत है (कविता) - डॉ दलजीत कौर


यही बसंत है
(कविता) 
मैं
एक ठूँठ -सी
जीवन -जंगल में
महसूसती हूँ
नितांत नकारात्मकता |
देखती हूँ
सूखे पेड़
सूखी टहनियाँ
बिखरे फूल
बिछड़े पत्ते
वीरान वन मन
पतझड़ ही पतझड़ |
उड़ता है एक दिन
कोई सुनहरा पंछी
रंग -बिरंगे
तोते ,तितलियाँ
कबूतर -जोड़ा
चिड़िया ,कोयल
बैठती है गिलहरी
मेरे पास आ कर
और उमड़ता है
मन में विश्वास
जीवंतता का |
अगली सुबह
पाती हूँ मैं
दिल की जड़ो में
फूट आई है
कोई कोंपल
यही बसंत है
जीवन बसंत |

-०-
संपर्क 
डॉ दलजीत कौर 
चंडीगढ़


-०-

***
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