सुकून मिले
(कविता)
कभी छू कर,देखूं तेरी रूह को
तो मुझे भी सुकून मिले,
कि तू मेरा हैं जिस्म से नहीं रूह से।
कभी दिल लगा कर,
देखो मेंरे एहसासों को
तो मुझे भी सुकून मिले,
कि इन एहसासों में सिर्फ मैं बसते हूँ।
कभी स्पर्श करो,
मेरी बेचैन करती यादों को
तो मुझे भी सुकून मिले,
कि इन यादों में बस,
मैं ही याद आता हूं तुमको।
कभी आगोश में लो,
मेरी मुस्कुराहट को
तुम मुझे भी सुकून मिले,
कि इस मुस्कुराहट के पीछे
हर पल मैं रहता हूं।
-०-
राजीव डोगरा
राजीव डोगरा
कांगड़ा हिमाचल प्रदेश
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