अपने आवास पर
(कविता)
जब मैं पथ पर होता हूँ
या अपने सफ़र में चलता हूँ
तब सहता हूँ मौसम की मार
उससे बचने के लिए चाहे तान लूँ छतरी
अथवा ओढ़लूँ गर्म शाल
फ़र्क कुछ नहीं पड़ता
पर आवास पर जब होता हूँ
पूर्णतः सुरक्षित रहता हूँ
रखता हूँ मौसम को
मन मुताबिक़ नियंत्रित।
जब मैं पथ पर होता हूँ
या अपने सफ़र में चलता हूँ
तब सहता हूँ मौसम की मार
उससे बचने के लिए चाहे तान लूँ छतरी
अथवा ओढ़लूँ गर्म शाल
फ़र्क कुछ नहीं पड़ता
पर आवास पर जब होता हूँ
पूर्णतः सुरक्षित रहता हूँ
रखता हूँ मौसम को
मन मुताबिक़ नियंत्रित।
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