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Saturday 15 February 2020

जब हमें गुस्सा आ जाए (कविता) - लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव

जब हमें गुस्सा आ जाए
(कविता)
आधुनिक भौतिकता के परिवेश में,
हम समाज में जा रहे हैं पिछड़।
हीन भावना से ग्रसित होकर,
लोगों से गुस्से में जा रहे हैं झगड़।।

असफलता, तनाव व कुंठा हो,
क्रोध हमें तब आ जाता है।
रिश्तों पर क्रोध असर डाले,
पर हमें समझ न आता है।।

काम का अधिक दबाव,
शरीर हमारा थक जाए।
चिड़चिड़ेपन के हो रहे शिकार,
हमें रात भर नींद न आए।।

हम अपने को ताकतवर समझे,
करते हैं झूठा अहंकार।
क्रोध हमारा दुश्मन बनता,
लोगों से करें गलत व्यवहार।।

कभी जब भय से उपजे क्रोध,
हम हो जाते हैं कायर।
जब कोई अपमान कर दे,
गुस्से में हम हो जाते फायर।।

क्रोध अधिक आ जाने से,
मानसिक तनाव बढ़ जाए।
नकारात्मक विचार आने लगते,
हम अवसादग्रस्त हो जाएं।।

जब करता हो कोई उपेक्षा,
तिरस्कृत हमको जाने।
गुस्से में हम उबल जाएं,
अपनों को भी न पहचाने।।

बात बात पर गुस्सा करना,
स्वभाव हमारा हो जाए।
संयम, योग और ध्यान करे,
क्रोध हमें जल्द न आए।।
-०-
लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव
स्थायी पताबस्ती (उत्तर प्रदेश)


-०-
***
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1 comment:

  1. समय सापेक्ष कविता के लिये आप को बहुत बहुत बधाई है आदरणीय !

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