पुराना घर
(लघुकथा)
भतीजे अंशु का फोन आया है वह आज मिलने आ रहा है। मधु बहुत खुश है। माता-पिता के गुजर जाने के बाद भैया- भाभी ने तो नजर फेर सी ली थी चलो भतीजा तो रिश्ता मान रहा है यह सोच कर वह अंशु का मनपसंद खाना बनाने में जुटी हुई है। बेल बजती है तो दौड़ती हुई दरवाजा खोलती है। सामने अंशु को पाती है। कैसा है तू कितने दिन बाद आया, सब ठीक है ना यह पूछती मधु उसे जलपान कराती है। मधु के बच्चे भी खुश है कि बहुत दिन बाद मामा के घर से कोई आया है। तब तक मधु के पति दिनेश भी ऑफिस से आ जाते हैं। सब बैठकर खाना खाते हैं तभी दिनेश पूछ बैठते हैं और कैसे आना हुआ अंशु? कुछ नहीं फूफा जी बस बुआ की याद आ रही थी और थोड़ा काम भी था। खाना खत्म होने के बाद अंशु पुराने घर की बात छेड़ता है बुआ वह दादा-दादी का जो पुराना मकान है पापा उसे बेचना चाह रहे हैं। आपकी साइन के बिना तो बिक नहीं पाएगा। इन कागजों पर आप साइन कर दो बाकी हम बाद में समझ लेंगे। अंशु की इस बात से मधु और दिनेश सकते में आ जाते हैं। पुराने घर में बीते बचपन और माता-पिता की याद के बीच भारी मन से मधु उन कागजों पर साइन कर देती है। साइन होते ही अंशु कहता है अब चलता हूं बुआ कब आ रही हो फिर हमारे घर। मधु लंबी सांस खींचकर कहती है अब क्या करूंगी वहां आकर। अंशु स्थिति को भांप तुरंत वहां से रवानगी डाल देता है।
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