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Saturday, 28 March 2020

प्रेम के सब रस रंग (कविता) - शुभा/रजनी शुक्ला



प्रेम के सब रस रंग
                    (कविता)
प्रेम प्यार स्नेह सब एक ही पेड़ के अंग
सतरंगी डालो में दिखे प्रेम के सब रस रंग

भाई बहन पितृ और माता
सबका सबसे है प्रेम का नाता
दादा नाना दोस्त और सखियां इनका आपस मै अद्भुत नाता

प्रेमरस की है अजब सी माया इससे कोई भी ना बच पाया
जो ना करे प्रेम किसे से तो
वो प्राणी दानव कहलाता

मुक बाघिर भी प्रदर्शित करते
मौन ही सही पर अपनी भाषा
मुक जानवर भी रखते मन में
प्रेम प्रदर्शन की अभिलाषा

राधा कृष्ण की प्रेम कहानी
हरेक के मन में प्रेम जगाती
एक दूजे पे अटूट श्रद्धा से
बिछड़े जोड़ो को मिलवाती

राधे राधे रट कर देखो
कृष्ण का संग यूं ही पा जाओगे
कृष्णा कृष्णा रटते रहना
प्रेम राधा का पा ही लोगे


युगों युगों तक याद रखी है
हमने लैला मजनू की प्रेम गाथा
ईश्वर की सुंदर सृष्टि में
प्रेम विरक्त कोई कैसे रह पाता

प्रेम करना बुरी बात नहीं
प्रेम से सच्चा कुछ भी नहीं
पर मर्यादा की हद पार करो
बस ये है युवाओं सही नहीं।

आधुनिक काल में बदल गये
प्रेम के सारे प्राचीन पैमाने
आंखों से उतरकर प्रेम आज तो
शर्तों की भाषा पहचाने

प्रेम की मर्यादाये भी तोड़ते
आज के प्रेमी पागल दीवाने
जाके कौन इन्हे समझाए
प्रेमी के होते दिल ही ठिकाने

सच्चे प्रेम की एक ही निशानी
सुनी तो होगी मीरा की जुबानी
कबीर के ढाई आखर का मतलब
कब समझेगी पीढ़ी नई दीवानी

आज प्रेम का अनुपम दिन है
प्रेम ही पाओ प्रेम ही बांटो
गर कोई दुखी मिल जाय
तो गले लगा उसके गम बांटो
-०-
शुभा/रजनी शुक्ला
रायपुर (छत्तीसगढ)

-०-

***
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