दीवार के कान
(लघुकथा)
सोनू और मोनू दोनों में गहरी दोस्ती थी। दोनों एक ही शहर में, एक ही मोहल्ले में पास पास ही रहते थे। आपस का प्रेमभाव इतना झलकता था कि जैसे दो सगे भाई ही हो। दोनों विपत्ति के समय एक दूसरे की मदद के लिए हरदम तैयार रहते। दोनों साथ साथ उठते बैठते, खाते पीते तथा सोते जागते थे।
छः महीने से इनके मोहल्ले में इनके पड़ौस के मकान में एक असलम नाम का व्यक्ति किरायेदार के रूप में रह रहा था, वह सुबह जल्दी घर से निकल जाता और देर रात सिर्फ सोने के लिए आता था।
दोनों दोस्तों को जब पता चला कि हमारे पड़ौस में कोई असलम रह रहा है तो उस पर ध्यान रखना शुरू कर दिया। असलम से कभी कभी बातचीत भी करने लगे। वो क्या काम करता है किसी को कोई मालूम नहीं। उसे पूछने पर वो जवाब देता कि मैं छूटकर मजदूरी करता हूँ। कहीं पर स्थायी रूप से एक जगह काम नहीं करता। दोनों ने उस पर नजर रखना जारी रखा।
एक दिन रात को 12:30 बजे असलम के कमरे से कुछ आवाजें सुनाई दी, साफ उर्दू में बोल रहे थे। हमारा पलँग उसके कमरे से सटी दीवार पर लगा हुआ था, अतः धीरे धीरे अस्पष्ट शब्द कानों में सुनाई दे रहे थे। हमने अपने कान दीवार से बराबर में सटा लिए ताकि कुछ स्पष्ट सुनाई देने लगे। आधे शब्द सोनू को तो आधे मोनू को समझ में आये। दोनों ने अपने अपने सुने शब्दों को स्पष्ट किया तो पता चल गया कि ये कोई आतंकवाद गिरोह में लिप्त है।
असलम के कमरे में उस वक्त 4-5 व्यक्ति भी और थे वे आपस में कह रह थे कि कल दोपहर को 01:15 पर एक ही समय में शहर के रेलवे स्टेशन, हवाई अड्डा, बिग मॉल में तथा बस स्टैंड पर धमाका हो जाना चाहिए। ये सब फोन पे कोई आका इनको दूसरे देश से बता रहा था। ये सब एक साथ जी आका....जी आका....से प्रत्युत्तर दे रहे थे।
दोनों दोस्तों को सतर्क होने में ज्यादा देर नहीं लगी, दोनों ही अपने कमरे से उठकर पास के पुलिस थाने पहुंचे और पूरा घटनाक्रम सुनाकर पुलिस को बुलाके असलम व उनके साथियों को पकड़वा दिया, जिससे बड़ा हादसा टल गया साथ ही कई राज भी खुले।
15 अगस्त को इस कार्य हेतु सोनू मोनू को जिला कलेक्टर द्वारा सम्मानित भी किया। सम्मान करते वक्त उनसे पूछा गया कि आपको कैसे पता चला कि ये आतंकवादी है? तब अपने प्रत्युत्तर में दोनों ने एक साथ बोला - "दीवार के भी कान होते है।"
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पता
छगनराज रावपता
जोधपुर (राजस्थान)
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