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Monday, 2 March 2020

ईद का चाँद (कविता) - विकास पाटील


ईद का चाँद
(कविता)
पाँच साल के बाद
बस्ती में चाँद निकला
सूरत वैसी थी
ईद के चाँद जैसी
हमारी बस्ती में
चाँद का दीदार होना
तड़पती हुई जान में
जैसे वेन्टिलेटर लगाना
चाँद सड़क पर
उछलता है, कूदता है
विवशता के कारण
उसमें बचपन भरा है
क्योंकि
नाला सड़क से बहता है
एक-दूसरे से चिपके
गड्डों से रास्ता बना है
बच्चे-बूढे उसमें खोजते हैं
अपनी तकदीर
कहाँ रखे पाँव
गड्डे में, कीचड़ में
मच्छरों की भरमार
गंदगी, सभी बीमारियाँ
और एक गंध
उसी के साथ दिन-रात बिताते हैं
अब चाँद प्रतिदिन
बस्ती में नजर आता है
हर एक के घर जाकर
‘अच्छे दिन’ के सपने दिखाता है
बच्चों के चेहरे पर
हल्की सी मुस्कान है
अँगिठियाँ आज
गर्म हैं
रूखा-सूखा ही सही
कुछ दिनों के लिए
खत्म हुआ है
पेट का अकाल
चुनाव खत्म हुआ
रूझानों में चाँद निखर गया
फूल-मालाओं से
उसे पूजा गया
ईद की रात गुजर गयी
चाँद का निकलना दुश्वार हुआ
बस्ती में वही
रोजमर्रा की जिंदगी ...............
-०-
पता:
विकास पाटील
सांगली (महाराष्ट्र)

-०-


***
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1 comment:

  1. बाह! बहुत सुन्दर समसमायिक कविता के लिये आप को बुत बहुत बधाई है।

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