मजदूर
(कविता)
भोर से ही काम मे रत हो रहे मजदूर ।
साँझ को थक हार घर को लौटते मजदूर ।
ध्येय है पैसा कमाना ,पेट की है मांग ।
बेइमानी ना करें पर ,सत्य निष्ठा लांघ ।।
बोझ कांधो पर चढ़ा है ,पालते परिवार ।
फावड़ा ले हाथ करता ,कर्म हेतु प्रहार।
बांध नदियों पर बनाते ,श्रम करें भरपूर ।
तोड़ते हैं पत्थरों को ,रात दिन मजदूर ।।
चीथड़े तन पर लपेटे ,कर्म में तल्लीन ।
जूझते मजबूरियों से ,लोग कहते दीन ।
है बना उनका बसेरा ,ये खुला आकाश ।
एक दिन किस्मत खुलेगी ,मन भरा विश्वास ।।
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बिलकुल सही सुन्दर कविता के लिये आँप को बहुत बहुत बहुत बधाई है।।
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