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Thursday, 26 March 2020

मै छोटा सा बिन्दु हूँ (कविता) - अजय कुमार व्दिवेदी


मै छोटा सा बिन्दु हूँ
(कविता)
धरती माँ के गर्भ से ऊपजा।
मैं छोटा सा बिन्दु हूँ।

हिन्दू हूँ मैं हिन्दू हूँ।
मैं भारत का हिन्दू हूँ।

अत्याचार नहीं करता मैं।
मैं अत्याचार नहीं सहता।

आतंक मचाने वाला कोई ।
मैं व्यवसाय नहीं करता।

जब जब अधर्म बढ़ जाता हैं।
मैं राम बन जाता हूँ।

चढ़ा प्रत्वन्चा कोदंड़ पर।
रावण को मार गिराता हूँ।

शिखर हिमालय की चोटी मैं।
मैं ही कश्मीर की घाटी हूँ।

हरा भरा एक खेत भी मैं।
मै ही रेगिस्तान की माटी हूँ।

हैं जीवन मुझसे मरण भी मै हूँ।
सानिध्यो की शरण भी मैं हूँ।

पर आज मैं बेबाक हूँ।
बहुत ही हताश हूँ।

बढ़ रहीं निर्लज्जता।
उससे मैं उदास हूँ।

लुट गयी जो बेटियां।
उन्हें बचा न पाया मैं।

हो रहा प्रतित की मै।
एक जलती लाश हूँ।
अब होता प्रतित अर्जुन बनकर।
फिर कुरूक्षेत्र चलना होगा।

हाथों में गांडिव उठा।
फिर शत्रु से लडना होगा।

लुट रही द्रौपदी की लज्जा।
देखो बीच सभा में फिर।

भीम बनकर हमें दुशासन।
का बध अब करना होगा।

चलो राम बन जाए हम।
रावण को शबक सिखाना हैं।

हनुमान की तरह हमें फिर।
लंका को जलाना हैं।

कहीं कोई सीता को हर कर।
फिर से ना ले जाने पाए।

ऐसा होने से पहले ही।
हमें रावण को मिटाना हैं।

अपराधियों के शीश पर।
अब नाचता मैं काल हूँ।

काल हूँ मैं काल हूँ।
शरीर से बीकराल हूँ।

हाथ में त्रिशूल मेरे।
माथे पे त्रिपुण्ड हैं।

ध्यान से तुम देखो मुझे।
मै ही महाकाल हूँ।

मैं ही ब्रह्मा मैं विष्णु हूँ।
और मैं ही शिवेन्दू हूँ।

धरती माँ के गर्भ से ऊपजा।
मैं छोटा सा बिन्दु हूँ।

हिन्दू हूँ मैं हिन्दू हूँ।
मैं भारत का हिन्दू हूँ।
-०-
अजय कुमार व्दिवेदी
दिल्ली
-०-



***
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