चाहत
(लघुकथा)
दो अलग-अलग परिवार एक ही मकान में रहता है। हप्ते पन्द्रह दिनों के अंदर दोनों परिवार में एक-एक नई बहूएं आई । पहले आने वाली बहू सुंदर सुशील एवं पढ़ी लिखी थी, जबकि बाद में आने वाली बहू पहले वाली से काफी कमतर थी। पहले वाली बहू एक घंटे के अंदर घर का सारा काम निपटा कर दिन भर आराम करती थी जबकि दूसरी बहू धीरे-धीरे दिन भर काम करती रहती थी ।
पहले वाली के घर के लोग कहते थे-"तुम सारा दिन बैठे रहती हो कोई काम धंधा नहीं करती हो । नेहा को देखो दिन भर काम करती रहती है। कभी काम से जी नहीं चुराती। खाना बनाने के सिवाय भी बहुत सारा काम होता है ------------।"
उधर दूसरी बहू के घर के लोग कहते थे कितनी सुस्त है ये लड़की एक ही काम में सारा दिन लगी रहती है। तनु को देखो एक-दो घंटे के अंदर घर का सारा काम निपटा कर दिन भर मौज करती है।ये तो एकदम भोंदू है भोंदू ----------------।-"
एक दिन दोनों बहुएँ आपस में बातें कर रही थी । अजब किस्मत है हमारी । तुम्हें धीरे-धीरे काम करने के लिए डांट पड़ती है और मुझे जल्दी-जल्दी । आखिर इनकी चाहत क्या है ? क्या चाहते हैं ये लोग? हमें इनकी चाहत पूरी करनी होगी।"
और दोनों चाहत पूरी करने के लिए तरकीब सोचने लगी।
-०-पता:
दिनेश चंद्र प्रसाद 'दिनेश'
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
-०-
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