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Sunday 5 April 2020

मेरी आंखों का तारा (कविता) - ओमप्रकाश मेरोठा 'ओप'

मेरी आंखों का तारा
(कविता)
- मां अपने बेटे से कहती है -
मेरी आंखों का तारा ही मुझे आंखें दिखाता है
जिसे हर एक खुशी दे दी वो हर गम से मिलाता है
जुबां से कुछ कहूं किससे कहूं कैसे कहूं , मां हूं
शिकाया बोलना जिसको वो अब चुप रहना सिखाता है
सुला कर सोती थी जिसको वो रातभर जगाता है
सुनाई लोरियां जिसको वो अब ताने सुनाता है
सिखाने में उसे कुछ कमी मेरी रही यह सोंचू
जिसे गिनती सिखाई, गलतियां मेरी सुनाता है

तुम गहरी छांव है अगर जिंदगी एक धूप है मां
धरा पर कब कहां तुझसा कोई स्वरूप है मां
अगर ईश्वर कहीं पर है तो उसे देखा है किसने
धरा पर तो तू ही " ईश्वर "को ही रूप है मां
ना ये उंचाई सच्ची है ना ये आधार सच्ची है
ना कोई चीज है सच्ची, ना ये संसार सच्चा है
मगर धरती से अंबर तक , युगों से लोग कहते हैं
अगर सच्चा है कुछ जग में तो , वो मां का प्यार सच्चा है

जरा सी देर होने पर सभी से पूछती है मां
पलक झपके बिना दरवाजा घर का ताकती है मां
हर एक हाहट पे उसका चौक पडना , फिर दुआ देना
मेरे घर लौट आने तक , बराबर जागृति मां
सुलाने के लिए मुझको , खुद जागी रही मां
शराने से पैर तक अक्सर मेरे बेटी रही मां
मेरे सपनों में परियां , फूल तितली भी तभी तक थे
मुझे आंचल में अपने लेके जब लेठी रही मया

- मां की हिम्मत देखिए -
बड़ी छोटी रकम से घर चलाना जानती थी मां
कमी थी पर बड़ी , खुशियां जुटाना जानती थी मां
मैं खुशहाली में भी रिश्तो में बस दूरी बना पाया
गरीबी में भी हर रिश्ता निभाना जानती थी मां

की, लगा बचपन में यूं अक्सर अंधेरा ही मुकद्दर हैं
मगर मां हौसला देकर , यूं बोली तुमको क्या डर है
कोई आगे निकलने के लिए रास्ता नहीं देगा
मेरे बच्चों बढ़ो आगे तुम्हारे साथ ईश्वर हैं
किसी के जख्म ये दुनिया , तो अब सिलती नहीं ये मां
कल्ली दिल में कहीं अब प्रीत की खिलती नहीं मां
में अपनापन ही अक्सर ढूंढता रहता हूं रिश्तो में
तेरी " निश्चल " सी ममता तो कहीं मिलती नहीं मां
दुनियां की हर खुशी हे मा -
गमों की भीड़ में जिसने हमें हंसना सिखाया था
वो जिसके दम से तूफानों ने अपना सर झुकाया था
किसी भी जुल्म के आगे , कभी " झुकना "नहीं बैठे
"Op "की उम्र छोटी है ये मुझे मां ने सिखाया था
भरे घर में तेरी हाहट कहीं मिलती नहीं मां
तेरे हाथों की नरमाहट कहीं मिलती नहीं मां
मैं तन पर लादे फिरता हूं , दूसाले रेशमी " लेकिन "
तेरी गोदी से गर्माहट , कहीं मिलती नहीं मां
स्वर्ग में भी तेरी जैसी , ममता नहीं मिलती मां
बस तू पास रहे मेरे , तो स्वर्ग दिखाई देता हे मां,,,,
-०-
पता:
ओमप्रकाश मेरोठा 'ओप'
बारां (राजस्थान)
-०-

***
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