जीवन यथार्थ
(कविता)
दुर्गंध युक्त वातावरण है बहुतसड़कों पर चीरहरण है बहुत।
वास्तविक रूप कैसे देखें मनुज का,
नीयत पर ढका आवरण है बहुत।
वही करुण क्रंदन ,वही मन का रुदन,
जहाँ जीवन है, वहाँ मरण है बहुत।
जीवन की थकन अब विश्राम चाहे,
करता कोमल तन भ्रमण है बहुत।
शान्ति चैन अमन सब कल्पना की बातें,
प्रतिदिन जीवन में अब रण है बहुत।
जल वायु , मृदा सर्वस्व प्रदूषित,
मैला हुआ प्रकृति का कण- कण है बहुत।
मृत आशाओं का संग्रहालय सा जीवन,
मृगतृष्णा के पीछे विचरण है बहुत।
प्रसन्नता मां बाप के घर छोड़ आये प्रीति,
पराये देश में उदासी के कारण है बहुत।।
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